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Showing posts from April, 2013

समय चक्र

उन पलों उन लम्हों को याद करें  जब हम तुम नादान बच्चे थे  हर बात पे लड़ाई होती थी  और दांत हमारे कच्चे थे  कन्धों पे बस्ता टंगे  जब साथ साथ पढने जाते थे  और जब दिन भर झगड़ा करने पर  मम्मी की डाँट खाते थे वो घंटे भर तक खाना  और पढने से जी चुराना  लेकिन घडी में पांच बजते ही  झट से खेलने को भाग जाना   वो ख़ुशी और मासूम मुस्कान  जो तेरे चेहरे पे आती थी  जब नन्ही सी तेरी कलाई पे  'सबसे आगे' मेरी राखी सज जाती थी  कुछ लम्हा बीत गया  कुछ साल निकल गए  जाने क्यों आज लगा  हमारे 'रोल' बदल गए  तुझसे हर चिंता बांटने की अब  आदत सी है हो आई  जाने तू कब सयाना हो गया  ये बात समझ न आई  तेरा समझाना मुझको अब हर पल  और तेरी बड़ी बड़ी बातें  तेरे 'ज्ञान' भरे सब 'लेक्चर' मुझको हैरान कर जाते  तेरे मुझसे ये कुछ सवाल  मेरे लिए ये तेरी फिकर  'दीदी तू खुश तो है ना' का जवाब  मै क्या ...

The Inner Voice......

 वो प्यार थोडा ज्यादा, वो लाड इक तुम्हारा  बाबुल तुझसे तो बस माँगा था, मैंने एक सहारा  फिर तू क्यूँ मुझको यूँ छोड़ गया ........... एक साथी छोटा नाटा, मौज मस्ती, सैर सपाटा   तुझसे झगडा तुझसे प्यार, कभी झप्पी कभी एक चांटा  भाई तू ऐसे मुंह मोड़ गया .......... तेरी शिक्षा तेरा ज्ञान, तुझे देती थी मैं सम्मान  छोड़ गया बिलखता राह में, फिर तू कैसा महान  गुरु की गरिमा को तू तोड़ गया .............. बनी मैं कभी तेरा वो कन्धा, जिसपे सर रखकर तू रोया  पर जब थी मुझे मदद की आस, तू था ग़ुम कहीं पे खोया  दोस्त तू भी विश्वास झकझोड़ गया ........... छोड़ा घर तेरे संग आई, तेरे नए बसेरे में  तेरे प्यार की थी चाहत, उजाला था तू अँधेरे में  पिया तू तो दिल ही तोड़ गया ........... समाज के दरिंदों ने मुझको घेरा था  उनका खिलौना बना देह मेरा था  तब दिल था रोया, तुम सबको पुकारा  सुनी न आवाज़, न दिया कोई सहारा.  एक लड़की बन दुनिया में आई  माँ क्या ये था मेरा कसूर...